कुम्भ मेला (Kumbh Mela) क्यों लगता है



हिन्दू धर्म में कुम्भ मेले का बहुत ही खास महत्व है, हालाँकि कुम्भ मेले की शुरुआत कब और किसके द्वारा हुई इसके बारें में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है | ऐसा माना जाता है, कि कुम्भ का इतिहास लगभग 850 वर्ष पुराना है | भारत में कुम्भ स्नान की एक अलग ही मान्यता है, जिसके कारण दुनियाभर से लोग पवित्र नदी में स्नान करनें के लिए आते है |



कुम्भ मेले को भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है | कुम्भ मेले में मुख्य रूप से साधु, संत, तपस्वी, तीर्थयात्री आदि भक्त इसमें शामिल होते हैं, यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है | कुम्भ मेला (Kumbh Mela) क्यों लगता है, इतिहास,  कुम्भ मेला कब और कितने वर्ष बाद लगता है? इसके बारें में आपको यहाँ पूरी जानकरी विस्तार से दे रहे है |

Lord Shiva Names in Hindi

कुम्भ मेला का इतिहास (Kumbh Mela History)

यदि हम कुम्भ मेले के इतिहास की बात करे, तो कुम्भ का इतिहास बहुत ही पुराना है, जो कि भारतीय संस्कृति, आस्था और धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक है | कुम्भ मेले की शुरुआत को लेकर कोई ठोस प्रमाणिक जानकारी नहीं है, परन्तु इतिहास के पन्नों में इसके बारें में प्राचीनतम वर्णन चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया है, जो कि सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल काल के दौरान (629-645) ई० में भारत आये थे |



इसके आलावा प्राचीन पुरानों के अनुसार कुम्भ मेले का आयोजन शंकराचार्य द्वारा शुरू किया गया था, जबकि कुछ पौराणिकता कथाओं के अनुसार इस मेले की शुरुआत समुद्र मंथन के कारण हुई थी |

भारत के प्रमुख त्यौहारों की सूची

कुम्भ मेले की शुरुआत कैसे हुई (Kumbh Mela Starting)

कुंभ का अर्थ कलश होता है और 12 राशियों में से एक कुम्भ राशि है, जिसका प्रतीक कलश है | समुद्र मंथन से जुड़ी हुई कुम्भ मेले के इतिहास की कहानी के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा कहीं जा रहे थे तभी रास्ते में उन्हें इंद्र देवता मिले |

इंद्र भगवान नें महर्षि दुर्वासा का अभिवादन बहुत ही अच्छे से किया, इससे खुश होकर ऋषि नें उन्हें अपनें गले में पड़ी एक माला उपहार स्वरूप भेट दी | इंद्र देव नें वह माला स्वयं न पहनकर अपनें वाहन एरावत हाथी के गले में पहना दी, हाथी नें उस माला को उतारकर अपनें अपनें पैरो से कुचल डाला | यह सब देखकर ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने देवताओं को श्राप दे दिया |

महर्षि दुर्वासा द्वारा दिए गये श्राप से देवताओं की शक्ति कमजोर पड़ने लगी और असुरो की शक्ति बढ़ने लगी | इस बात का फायदा उठाते हुए असुरो नें देवताओं पर आक्रमण कर दिया | इसके पश्चात इंद्र देव और अन्य देवतागण भ्रमित होकर ब्रह्मा जी के पास पहुचे और सभी देवतागण मिलकर विष्णु जी के पास पहुचे | भगवान विष्णु ने चाल चलते हुए असुरो से समझौता करते हुए कहते है, कि हम सभी क्षीर सागर में समुद्र मंथन करेंगे और उसमें जी भी चीजे मिलेंगी उन्हें आपस में बाँट लेंगे, इसके पश्चात आपस में चल रहे युद्ध को समाप्त कर लेंगे |

इसके बाद से देवता और देत्य मिलकर समुद्र मंथन करने लगे और समुद्र मंथन के दौरान कुल 14 रत्न निकले, जिसमें सबसे पहले विष निकला जिसे भगवान शंकर नें पिया था | जबकि सबसे अंत में अमृत का कलश निकला, यह अमृत कलश असुरो के हाथ में आ जाये इसके लिए इंद्र देव के इशारे पर उन्हें पुत्र जयंत देव कलश लेकर उड़ चले | यह देखकर असुर भी उन्हें पकडनें के लिए उनके पीछे भागे| जयंत देव को पकडनें के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदे पृथ्वी के चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी | अमृत गिरनें के पश्चात इन्ही चार स्थानों पर नदियों की उत्पत्ति हुई, जिसके कारण आज भी इन्ही चार स्थानों पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है |

अमृत कलश को लेकर असुरो और देवताओं में कुल 12 दिनों तक युद्ध हुआ था | ऐसा कहा जाता है, कि देवताओं का एक दिन पृथ्वी के 1 वर्ष के बराबर होता है | भगवन विष्णु नें इस युद्ध को समाप्त करने के लिए एक सुन्दर कन्या का रूप धारण किया था और अमृत कलश अपनें हाथों में लेकर अमृत का बटवारा इस प्रकार किया था, जिससे सारा अमृत देवताओं को पिला दिया था, जब असुरो की बारी आयी, तो अमृत समाप्त हो गया था |

मकर संक्रांति (Makar Sankranti) क्या है

कुम्भ मेला कहाँ-कहाँ लगता है (Where The Kumbh Mela Takes Place)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुम्भ मेले का आयोजन 12 वर्ष में चार बार हर तीन-तीन वर्ष के अंतराल पर भारत के 4 पवित्र स्थानों संगम नदी, हरिद्वार में गंगा नदी,उज्जैन में शिप्रा नदी और नासिक में गोदावरी नदी के तट पर आयोजित किया जाता है | यह कुम्भ मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है, जिसमें दुनियाभर के लोग स्नान करनें के लिए शामिल होते है |

कुंभ के मेले को इन्हीं 4 स्थानों पर मनाया जाता है | कुंभ को 4 भागों में इस प्रकार विभाजित किया गया है, जैसे कि पहला कुंभ हरिद्वार में होता है, तो ठीक उसके 3 वर्ष बाद दूसरा कुंभ, प्रयाग अर्थात इलाहाबाद में और तीसरा कुंभ 3 वर्ष बाद उज्जैन में, और अगले 3 वर्ष बाद चौथा कुंभ नासिक में होता है |

अपनी जन्म कुंडली (Horoscope) कैसे देखे

कुम्भ मेले की तिथि का निर्धारण (Determination Date Of Kumbh Mela)

कुंभ मेले का आयोजन किस स्थान पर किया जायेगा, यह राशियों पर निर्भर होता है | इस मेले में सूर्य और ब्रहस्पति का बहुत ही अहम् योगदान माना जाता है | कुंभ मेले का आयोजन तभी किया जाता है जब सूर्य और ब्रहस्पति एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं | इसी के आधार पर मेले के आयोजन स्थल और तिथि का निर्धारण किया जाता है |

  • जब ब्रहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुम्भ मेले का आयोजन प्रयागराज (इलाहाबाद) में किया जाता है | 
  • जब मेष और ब्रहस्पति राशि कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है |
  • जब सूर्य और ब्रहस्पति का सिंह राशि में प्रवेश करते है,  तब कुंभ मेला नासिक में मनाया जाता है |
  • जब ब्रहस्पति सिंह राशि में और सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है | जब सूर्य देव का प्रवेश सिंह राशि में होता हैं, तब उज्जैन में कुंभ मनाया जाता है, जिसे सिंहस्थ कुंभ के नाम से जाना जाता है |

अपनी राशि (Zodiac) कैसे जाने ?

कुम्भ मेले के प्रकार (Types Of Kumbh Mela)

1.महाकुम्भ मेला (Mahakumbh Mela)

महाकुम्भ का आयोजन सिर्फ प्रयागराज अर्थात इलाहाबाद में 12 पूर्ण कुम्भ मेलों या 144 वर्षों के बाद किया जाता है |

2.पूर्ण कुम्भ मेला (Purna Kumbh Mela)

पूर्ण कुम्भ मेला प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल पर आयोजित किया जाता है | भारत के 4 पवित्र स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में से प्रत्येक स्थान पर बारी-बारी 12 वर्ष के बाद आयोजित किया जाता है |

3.अर्ध कुम्भ मेला (Ardh Kumbh Mela)

अर्ध कुम्भ मेले का आयोजन प्रत्येक 6 वर्ष के अंतराल में भारत के सिर्फ दो स्थानों हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है |

4.माघ कुम्भ मेला (Magha Kumbh Mela)

माघ कुम्भ मेले को मिनी कुम्भ मेला भी कहते है | इस मलेल का आयोजन प्रत्येक वर्ष सिर्फ प्रयागराज में किया जाता है, जो कि हिन्दू केलेंडर के अनुसार माघ माह में लगता है |      

पंचक का क्या मतलब होता है

यहाँ आपको कुम्भ मेला (Kumbh Mela) के लगने के विषय में जानकारी प्रदान की गई है | इस तरह की अन्य जानकारी के लिए आप https://hindiraj.com पर विजिट कर सकते है | अगर आप दी गयी जानकारी के विषय में अपने विचार या सुझाव अथवा प्रश्न पूछना चाहते है, तो कमेंट बॉक्स के माध्यम से संपर्क कर सकते है |

नाग पंचमी क्या होता है

Leave a Comment