ग्लेशियर किसे कहते है



ग्लेशियर जिसे हिमनदी, हिमानी के नाम से भी जाना जाता है, पृथ्वी सतह पर पाए जाने वाली गतिशील बर्फ की परत होती है | इसे अंग्रेजी में ग्लेशियर (Glacier) कहते है | यह अपने भार के कारण पर्वतीय ढालो पर उसकी दिशा अनुसार गतिशील रहते है | यह ऐसे इलाके में पाए जाते है जहा हिम का जमाव, हिम गलन से ज्यादा होता है | ज्यादातर समुंदरी तल से काफी उच्चाई पर ही ऐसी स्थिति पायी जाती है | साल दर साल, पर्वतों पर ग्लेशियर जमा होते रहते है व समय के साथ इनका क्षय भी होता रहता है | यही जल पृथ्वी पर मीठे पानी के रूप में पाया जाता है |



अपने भार के कारण एक ग्लेशियर की सतह दूसरी सतह से खिसकती रहती है और पर्वत ढाल के अनुसार प्रवाहित होती रहती है जिसे हिमनद के रूप में भी जानते है | भारत में लद्दाख, श्रीनगर, हिमाचल जो दीर्घ हिमालय रेंज में स्थित है, बड़े-बड़े आकर के ग्लेशियर पाए जाते है | इस आर्टिकल में हम ग्लेशियर क्या है, यह कितने प्रकार के होते है और भारत में ग्लेशियर कहाँ पाए जाते है, विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे |

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ग्लेशियर क्या है (What is Glacier in Hindi)

पृथ्वी की सतह पर गतिशील रूप में पाए जाने वाली हिम चादर या हिम को ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है, यह विभिन प्रकार की अवस्थाओ में पूरे विश्व में पाए जाती है | इसे हिम नदी के रूप में भी पहचानते है | ग्लेशियर का पानी पीने योग्य होता है, इसके पानी से समुन्द्र के पानी की तुलना करना भी ठीक नहीं है | इन्ही ग्लेशियर से भारत जैसे देश में अनेक नदिया के रूप में ग्लेशियर का पानी प्रवाहित होता है जोकि पीने का लायक होता है परन्तु मानवीय कार्यो से कही स्थानों पर इसका पानी भी दूषित पाया जाता है |



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ग्लेशियर कैसे बनता है और कैसे पिघलता है? (Formation and Melting of Glacier)

ग्लेशियर का निर्माण के लिए वहां बर्फ का जमाव की दर, क्षय की दर से बहुत ज्यादा होता है, तो इस प्रकार बर्फ के जमने से बड़े बड़े आकर का पहाड़ बन जाते है | ग्लेशियर दो प्रकार के रूप में पृथ्वी पर पाए जाते है और पहले अल्पाइन या घाटी में पाए जाने वाले ग्लेशियर और दुसरे में पर्वतीय ग्लेशियर, जो पर्वतों की चोटी पर पायी जाती है |

ग्लेशियर का निर्माण एक साथ नहीं होकर साल दर साल बर्फो की जमावट से होता है जिससे एक चादर के उपर बर्फ की दूसरी चादर बनती रहती है | इस प्रकार धीरे धीरे बर्फ सघन हो जाता है और बड़े आकर में परिवर्तित हो जाता है | दबाव के बढ़ने से बर्फ धीरे धीरे पिघलने लगती है जो घाटियों में हिमनदी के रूप में बहने लगती है | इस प्रकार ग्लेशियर का बनना और पिघलना प्रक्रिया एक साथ चलती रहती है और यह एक अनंत प्रक्रिया है | इन्ही ग्लेशियर के पिघलने से इक्कठा होने वाला पानी भारत में नदियों के रूप में बहता है जिससे खेती व जीवन से जुड़े अन्य कार्य किये जाते है |

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ग्लेशियर का मानवीय जीवन पर प्रभाव (Glacier impacts on Human)

ग्लेशियर अगर ज्यादा मात्रा में पिघलना शुरू कर दे तो उसके आस पास के इलाके में बाड़ का खतरा बन जाता है, जिससे उसकी खेती व स्थानीय निवास पर भी प्रभाव पड़ सकता है | इस प्रकार का प्रभाव प्रतिकूल होता है और जिससे मानव जीवन पर संकट भी आ सकता है | इसके बाद, यदि गर्मी के इलाके के पास कही ग्लेशियर पिघलता है तो इसका लाभ वह के लोगो को मिलता है जिससे उन्हें ठंडी हवाए मिलती है और सुकून महसूस होता है | इसे अनुकूल प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है |

ग्लेशियर के बहुत ज्यादा पिघलने से पूरे विश्व के मौसम पर प्रभाव होता है, इसलिए पेरिस समझोता चर्चा में आया और काफी देशो ने इसे ज्वाइन भी किया | इसके लिए कई देशो ने करार के रूप में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को नियंत्रण करने का फैसला लिया है जिससे पर्यावरण में सुधार लाया जा सके |

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उम्मीद है इस लेख के रूप में आपने ग्लेशियर की जानकारी कम से कम शब्दों में प्राप्त की होगी | अगर आपको ग्लेशियर से जुडी जानकारी सही से प्राप्त हुई हो तो यह लेख ज्यादा से ज्यादा शेयर करे |

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