पेट्रोल – डीजल की कीमत कैसे तय होती है



देश में पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती हुई कीमते लगभग हर दिन एक नया रिकॉर्ड बना रही हैं | यहाँ तक कि देश के सभी महानगरों में पेट्रोल की कीमतें अब 100 रुपये से ऊपर और डीजल की कीमत 90 रुपये से ऊपर प्रति लीटर के स्तर को क्रास कर गया है | सबसे खास बात यह है, कि इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें काफी कम हैं, इसके बावजूद हमारे देश में लोगो को एक लीटर क्रूड ऑयल (Crude Oil) अर्थात कच्चे तेल की तुलना में पेट्रोल के लिए चार गुना भुगतान करना पड़ रहा है |

मुख्य रूप से यह माना जाता है, कि पेट्रोल-डीजल की कीमते अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमत से निर्धारित होती है, परन्तु इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें घटनें के बावजूद भी घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल महंगा ही मिलता है। ऐसे में हमारे लिए यह जानना आवश्यक है, कि पेट्रोल – डीजल की कीमत कैसे तय होती है (Petrol – Diesel Price Calculation in India (Hindi))?

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भारत में पेट्रोल-डीजल की आवश्यकता (Requirement of Petrol & Diesel in India)

भारत में पेट्रोल और डीजल की मांग काफी अधिक है, जबकि भारत में इस प्राकृतिक सम्पदा की कमी है | जिसके कारण भारत अपनी जरुरत का 80 प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल बाहर अर्थात दुनिया के अन्य देशों से आयात करना पड़ता है। जबकि इंटरनेशनल लेवल पर क्रूड आयल की कीमते पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग देशों के आर्गेनाइजेशन (ओपेक) द्वारा तय की जाती है, और भारत को भी ओपेक द्वारा तय की गयी कीमतों पर ही कच्चा तेल खरीदना पड़ता है | 

पेट्रोल-डीजल की कीमत कैसे तय होती है (Petrol – Diesel Price Calculation in India)

आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि दुनियाभर में 160 प्रकार के क्रूड आयल अर्थात कच्चे तेल का व्यवसाय होता है और यह कच्चे तेल की डेंसिटी से लेकर उसकी लिक्विडिटीपर निर्भर होती है | इस कच्चे तेल को अधिकांशतः उनके भौगोलिक नामों जैसे- दुबई क्रूड, ब्रेंट क्रूड और ओमान क्रूड आदि नामों से जाना जाता है | चूँकि भारत अपनी आवश्यकता के अनुरूप 80 फीसदी से अधिक कच्चा तेल बाहरी देशों से आयात करता है, और इस क्रूड आयल का रेट ब्रेंटस, ओमान, दुबई के रेट से निर्धारित होता है | इस क्रूड आयल को तेल विपणन कंपनियां और रिफाइनरी द्वारा ख़रीदा जाता है |   

चूँकि इस कच्चे तेल को बेस प्राइस पर आयात किया जाता है | यदि इस आयल का शोधन भारत में किया जाता है, तो उसके मूल्य को बेस प्राइज में घटा दिया जाता है | तेल शोधन होनें के पश्चात उसमें आने वाले खर्च के साथ केंद्र सरकार और राज्य सरकार का टैक्स अर्थात कर जोड़ा जाता है|इन सभी करों (Tax) का भुगतान करनें के पश्चात इसमें डीलर अपने खर्च को जोड़ता है | इन सभी खर्चों को जोडनें के बाद जो भी कीमत निकलकर आती है, यह राशि ग्राहकों से वसूल की जाती है | इस प्रकार पेट्रोल और डीजल के दाम निर्धारित किये जाते है |     

पेट्रोल-डीजल की कीमते बढ़ने का कारण (Reasons For Hike in Petrol And Diesel Prices)

पेट्रोल और डीजल की कीमते बढ़ने का मुख्य कारण इसमें लगनें वाले लोकल टैक्स की अधिक वसूली है| इंटरनेशनल मार्केट में पेट्रोल-डीजल की कीमतें भले ही कम हो परन्तु इसका प्रभाव घरेलू बाजार मेंइसलिए नहीं पड़ता है क्योंकि एक आम नागरिक के पास यह आयल पहुंचते-पहुंचते सरकार द्वारा इसमें अनेक प्रकार के कर लगा दिए जाते है, जिसमें एक्साइज ड्यूटी और सेस शामिल होते है| जिससे सरकार को राजस्व प्राप्त होता है |    

इन सभी के अतिरिक्त प्रत्येक राज्य सरकार सेल टैक्स या वैट वसूलती है। इसके पश्चात इसमें माल-भाड़ा, वैल्यू एडेड टैक्स के साथ ही डीलर का कमीशन जुड़ जाता है। वर्तमान में पेट्रोल के खुदरा बिक्री मूल्य का 58 प्रतिशत और डीजल के खुदरा बिक्री मूल्य का लगभग 52 प्रतिशत है | इसका सीधा मतलब यह हुआ, कि यदि पेट्रोल की कीमत 100 रुपये लीटर है, तो केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लगाये गये टैक्स से 58 रुपये लिए जा रहे है |

जिसमें से केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के रूप में 32 से 33 रुपये और शेष धनराशि में वैट है, जिसे राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है | इस प्रकार एक आम नागरिक तक यह तेल पहुंचते-पहुंचते महंगा हो जाता है और इन्टरनेशनल मार्केट में क्रूड आयल की कीमत घटने या बढ़ने के बाद भी इसका लाभ नही मिल पाता है |

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सरकार द्वारा टैक्स में कटौती न करनें का कारण (Reasons For Not Cutting Tax By Government)

सबसे अहम बात यह है, कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा पेट्रोल-डीजल में लगने वाले टैक्स में कटौती क्यों नही करती है | इसका मुख्य कारण यह कर राजस्व का एक प्रमुख स्रोत होते हैं । दरअसल पेट्रोल और डीजल पर यदि एक्साइज ड्यूटीमात्र 1 रुपये बढ़ाने पर सरकारी खजाने को लगभग 13 से 14 हजार करोड़ रुपये का लाभ होता है | पेट्रोलियम मंत्रालय के मुताबिक, राज्यों ने पेट्रोलियम उत्पादों पर लगनें वाले वैट से वर्ष 2019-20 के दौरान 2 लाख करोड़ रुपये और अप्रैल, दिसंबर 2020-21 के बीच 1.35 लाख करोड़ रुपये से अधिक का संग्रह किया। 

यदि हम केंद्र सरकार की बात करे, तो सरकार नें पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क से 3.50 लाख करोड़ रुपये का राजस्व बढ़ाया | जबकि वर्ष 2019-20 कि तुलना में यह राजस्व 62 फ़ीसदी अधिक है | पिछले 6 वर्षों में पेट्रोल-डीजल पर लगनें वाले सेंट्रल एक्साइज से कुल टैक्स संग्रह में 308.2 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई | इसमें पेट्रोल से206 फीसदी जबकि डीजल से 377 फीसदी शामिल है |

सरकार का क्या कहना है (What Does The Government Say)

दर असल तेल विपणन कंपनियां (Oil Marketing Companies) पेट्रोल-डीजल की कीमतों में संशोधन अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर करती हैं | भारत में इस प्रक्रिया को डायनमिक प्राइसिंग (Dynamic Pricing) कहते हैं | इस सम्बन्ध में पेट्रोलियम मंत्री द्वारा यह स्पष्ट किया गया, कि पेट्रोल-डीजल की कीमत तय करनें में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है | दरअसल पेट्रोलिम पदार्थों का मूल्य को निर्धारित करने कि एक अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया है, और पेट्रोल कंपनियां मूल्यों को निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र होती है, और सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करती | इन कीमतो को तय करने का यह प्रोसेस सभी मार्किटिंग कंपनियों द्वारा मिलकर विकसित किया गया है |

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