मंकीपॉक्स क्या है ?



इन दिनों मंकीपॉक्स (Monkeypox) वायरस की चर्चा जोरों पर है। दरअसल इस नए वायरस की चपेट में सबसे ज्यादा जवान लोग आ रहे हैं। और जिन व्यक्तियों को इस वायरस ने अपनी चपेट में ले लिया है, उन व्यक्तियों के संपर्क में जो व्यक्ति आ रहे हैं उन्हें भी रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी की वजह से दिक्कतें पैदा हो रही है।

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वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा मंकीपॉक्स को खतरनाक वायरस की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इस वायरस की वजह से लोगों की मृत्यु भी हो सकती है। इस लेख में हम आपके साथ मंकीपॉक्स क्या है ? Monkeypox के लक्षण व कारण | मंकी पॉक्स के बारे में पूरी जानकारी सांझा करेंगे।

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मंकीपॉक्स (Monkeypox) क्या है ? Monkeypox disease in Hindi

वायरस की वजह से फैलने वाली मंकीपॉक्स एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी है जो कि जूनोटिक बीमारी की श्रेणी में आती है। चूंकि मंकीपॉक्स बीमारी जानवरों के द्वारा इंसानों में फैल रही है और इंसानों के संक्रमित होने के बाद यह एक इंसान से दूसरे इंसान में भी फैल रही है।



मंकीपॉक्स की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की त्वचा पर बड़े-बड़े दाने भी हो जाते हैं। यह दाने त्वचा के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं।

सामान्य तौर पर यह दाने पैर और हाथ तथा चेहरे पर हो रहे हैं और इसकी वजह से त्वचा पर घाव भी बनते जा रहे हैं। अभी तक इसके अधिकतर मामले सेंट्रल अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका में सामने आ रहे हैं परंतु दूसरे देशों में भी इसके कुछ मामले अब सामने निकल कर के आ रहे हैं।

साल 2021 में अमेरिका में मंकीपॉक्स के कई नए मामले सामने आए थे और वर्ष 2022 आते-आते यह बीमारी दूसरे देशों में भी फैल चुकी है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस बीमारी की रोकथाम करना काफी आवश्यक है  क्योंकि यह बीमारी लगातार अपने पैर पसारते जा रही है।

मंकीपॉक्स के लक्षण  | Symptoms of Monkeypox in Hindi

जिस प्रकार चेचक बीमारी के लक्षण होते हैं, उसी प्रकार इस बीमारी के भी लक्षण है। हालांकि यह देखा गया है कि चेचक बीमारी के जो लक्षण होते हैं उससे हलके लक्षण ही मंकीपॉक्स के हैं।

मंकीपॉक्स वायरस की चपेट में आने पर व्यक्ति के अंदर इस वायरस के लक्षण दिखाई देने में 5 दिनों से लेकर के 21 दिनों का समय लग जाता है। हालांकि कुछ लोगों में इस वायरस के लक्षण 7 दिनों से लेकर के 14 दिन में ही दिखाई देना प्रारंभ हो जाते हैं। मंकीपॉक्स के जो आरंभ में लक्षण व्यक्ति की बॉडी में दिखाई देते हैं वह निम्नानुसार हैं।

  •  बुखार |
  •  सिरदर्द |
  • मांसपेशियों में दर्द |
  •  कमर में दर्द |
  •  थकान और कमजोरी |
  • ठंड लगना |
  • लिम्फ नोड्स में सूजन |

जब कोई व्यक्ति इस वायरस की चपेट में आ जाता है तो उसे सबसे पहले बुखार होना प्रारंभ हो जाता है और बुखार हो जाने के पश्चात 1 से 2 दिनों के अंदर ही उसकी त्वचा पर दाने भी दिखाई देने लग जाते हैं।

हालांकि जो दाने त्वचा पर आते हैं वह त्वचा के किसी भी भाग को प्रभावित करते हैं परंतु इन दानों की वजह से चेहरा, हाथों की हथेलियां, पांव के तलवे, मुंह जैसे अंग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। मंकीपॉक्स की वजह से जो दाने पैदा होते हैं उनकी वजह से बॉडी पर घाव भी बन जाते हैं जो शुरुवात में तो छोटे होते हैं परंतु धीरे-धीरे यह बड़ा आकार ले लेते हैं।

क्या मंकीपॉक्स वायरस जानलेवा है ?

जानकारी के अनुसार मंकीपॉक्स के गंभीर मामलों में व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। जी हां, इस बात को सेंट्रल फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन संस्था के द्वारा कहा गया है। और अभी तक प्राप्त आंकड़े के अनुसार मंकीपॉक्स वायरस के चपेट में आने की वजह से 10 में से 1 व्यक्ति की मौत हो रही है।

और इसीलिए कहा जा रहा है कि यह वायरस इंसानों के लिए बहुत ही खतरनाक वायरस है। जब कोई इंसान इस वायरस की चपेट में आ जाता है तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे कि –

  • ब्रोन्कोपमोनिया, यह निमोनिया का ही एक प्रकार होता है।
  • मंकीपॉक्स वायरस की वजह से हमारी बॉडी अपनी ही कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाना प्रारंभ कर देती है।
  • इस वायरस की वजह से दिमाग की कोशिकाओं में सूजन पैदा हो जाती है जिसे एन्सेफेलाइटिस कहा जाता है।
  • इसकी वजह से हमारे आंखों की बाहरी परत पर इंफेक्शन पैदा हो जाता है जिसकी वजह से आंखों की रोशनी जाने का खतरा भी होता है।

मंकीपॉक्स के कारण | Reason for Monkeypox Diseases in Hindi

बता दें कि मंकीपॉक्स का जो वायरस है, वह ऑर्थोपॉक्सवायरस के परिवार का ही हिस्सा है। इसके अंतर्गत ऐसे सभी वायरस शामिल होते हैं जो चेचक का कारण बनते हैं। वर्ष 1958 वह समय था, जब विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा इस बीमारी को पहचाना गया था।

उस समय एक गहरी शोध की गई थी जिसमें कुल दो बंदरों के अंदर इस वायरस को पाया गया था। इसीलिए इसे मंकीपॉक्स नाम दिया गया।

वहीं इंसानों में वर्ष 1970 में पहली बार मंकीपॉक्स का मामला कांगो रिपब्लिक में देखा गया और इसके पश्चात इस वायरस की मौजूदगी मध्य अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका में भी देखी गई।

और इसके पश्चात इस वायरस ने लगातार अपने पैर पसारे और आज दुनिया के कई देशों में यह वायरस पहुंच चुका है जो लोगों की चिंता बढ़ा रहा है।

Monkeypox कैसे फैलता है ?

यह वायरस किसी संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से भी फैलता है, साथ ही अगर किसी व्यक्ति को इस वायरस ने अपनी चपेट में लिया है और उस व्यक्ति के संपर्क में कोई अन्य व्यक्ति आता है तो उसे भी यह वायरस अपनी चपेट में लेता है। इसके अलावा यह वायरस जानवर के अंदर या फिर इंसानों में नीचे दिए हुए संपर्क के जरिए फैलता है।

  • खून |
  • बॉडी का कोई तरल पदार्थ |
  • त्वचा के जख्म |
  • संक्रमित जानवर के द्वारा काटने पर |
  •  अगर संक्रमित जानवर का मांस खाया जाए तो |
  • संक्रमित व्यक्ति के साथ बिस्तर पर सोने पर |

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Monkeypox की जांच

अगर किसी व्यक्ति को मंकीपॉक्स की बीमारी है, उसे ऐसा एहसास होता है तो उसे इसकी जांच अवश्य करनी चाहिए। इसके लिए उसे डॉक्टर के पास जाना चाहिए। डॉक्टर सामान्य तौर पर मंकीपॉक्स की जांच करने के लिए नीचे दी गई जांच करते हैं।

मेडिकल हिस्ट्री

मेडिकल हिस्ट्री के अंतर्गत डॉक्टर के द्वारा पेशेंट से इस बारे में जानकारी हासिल की जाती है कि हाल ही में मरीज ने किन किन स्थानों का भ्रमण किया है। ताकि डॉक्टर को इस बात का पता चल सके कि पेशेंट कहीं प्रभावित इलाके से तो हो करके नहीं आया है।

लैब टेस्ट

लैब टेस्ट के अंतर्गत सबसे पहले डॉक्टर आप का सैंपल लेते हैं। यह सैंपल घाव में मौजूद तरल पदार्थ से भी लिया जाता है या फिर सुखी पपड़ी के तरल पदार्थ से भी लिया जाता है। और उसके पश्चात सैंपल लेने के बाद पोलीमरेज चेन रिएक्शन टेस्ट के जरिए सैंपल की Testing की जाती है और उसके पश्चात रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है ।

बायोप्सी

बायोप्सी के अंतर्गत डॉक्टर के द्वारा हमारी त्वचा की कोशिका का एक टुकड़ा लिया जाता है और उसके पश्चात उसकी मेडिकल चेकिंग की जाती है।

नोट: आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मंकीपॉक्स की चेकिंग के लिए किसी भी डॉक्टर के द्वारा खून का सैंपल नहीं लिया जाता है। दरअसल डॉक्टर ऐसा मानते हैं कि मंकीपॉक्स का वायरस इंसानों के खून के अंदर कुछ ही देर रहता है और यही वजह है कि ब्लड टेस्ट करके इस वायरस के में पता लगा पाना पॉसिबल नहीं है। इसलिए डॉक्टर ब्लड टेस्ट की जगह पर ऊपर बताए गए तरीके को आजमाते हैं और मंकीपॉक्स वायरस की चेकिंग करते हैं।

मंकीपॉक्स का इलाज

पिछले 1-2 साल से ही इस वायरस का नाम लोगों को सुनने में आ रहा है और यही वजह है कि हाल ही में इस बीमारी के फैलने की वजह से अभी तक इस बीमारी की कोई भी ट्रीटमेंट अथवा बीमारी का कोई भी इलाज नहीं ढूंढा गया है।

हालांकि अभी अधिकतर मामले में यह गंभीर नहीं हो रहा है और बिना ट्रीटमेंट करवाए हुए ही इस पर नियंत्रण पाया जा रहा है और लोग ठीक हो जा रहे हैं। हालांकि फिर भी इस बीमारी के प्रकोप को कंट्रोल करने के लिए साथ ही इसे फैलने से रोकने के लिए कुछ दवाइयों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जोकि निम्नलिखित हैं।

  • चेचक का टीका |
  • वैक्सीनिया इम्यून ग्लोब्युलिन |
  •  एंटीवायरल दवाइयां |

मंकीपॉक्स को लेकर के डब्ल्यूएचओ के द्वारा यह कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति ने चेचक का टीका लगाया हुआ है तो उसे मंकीपॉक्स होने की संभावना तकरीबन 15% ही रह जाती है। क्योंकि यह देखा जा रहा है कि चेचक का टीका मंकीपॉक्स के वायरस को रोकने में कारगर साबित हो रहा है।

इसलिए जिन लोगों को बचपन में ही चेचक का टीका लगा हुआ है, उन लोगों में मंकीपॉक्स वायरस के लक्षण बहुत ही कम हो सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मंकीपॉक्स और चेचक के वायरस को रोकने के लिए साल 2019 में एक वैक्सीन को परमिशन दी गई थी परंतु अभी भी उस वैक्सीन को दुनिया भर में नहीं पहुंचाया जा सका है।

Monkeypox बीमारी से बचाव

मंकीपॉक्स जैसे खतरनाक वायरस से अपना बचाव करने के लिए आप नीचे दिए गए टिप्स को अवश्य ही फॉलो करें।

  • ऐसे जानवर जो काफी लंबे समय से बीमार हैं या फिर ऐसे जानवर जो मर चुके हैं, आपको उनके पास नहीं जाना चाहिए।
  • वायरस से दूषित बिस्तर या फिर दूसरी चीजों के संपर्क में भी आपको अपने आप को आने से बचाना चाहिए।
  • अगर आप इस वायरस से पीड़ित जानवर के संपर्क में आ चुके हैं तो आपको अच्छी तरह से अपने हाथों को साबुन से धोना चाहिए।
  • अगर आप चिकन मटन खाते हैं तो जो चिकन मटन पूरी तरह से पक गए हैं उन्हें ही आपको खाना चाहिए।
  • जो लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं आपको उनसे दूरी बना करके रखनी चाहिए।
  • अगर आप अस्पताल में काम करते हैं और मंकीपॉक्स वायरस से पीड़ित किसी पेशेंट की देखभाल करते हैं तो आपको पीपीई किट अवश्य पहनना चाहिए।

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क्या Monkeypox के लिए कोई वैक्सीन है ?

मंकीपॉक्स की रोकथाम के लिए एक वैक्सीन  को परमिशन दी गई है। हालांकि अभी वह वैक्सीन कुछ ही देशों तक पहुंच पाई है। दुनिया के अधिकतर देशों तक वह वैक्सीन नहीं पहुंच पाई है।

वही रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि चेचक का टीका भी मंकीपॉक्स की रोकथाम के लिए काफी उपयोगी साबित हो रहा है।

FAQ:

मंकीपॉक्स का पहला मामला कब सामने आया ?

साल 1970

मंकीपॉक्स वायरस किसकी वजह से फैलता है ?

जानवरों की वजह से

मंकीपॉक्स वायरस का सबसे बुरा परिणाम क्या है ?

व्यक्ति की मृत्यु

अभी तक कितने देशों में मंकीपॉक्स वायरस फैल चुका है ?

15

भारत में मंकीपॉक्स वायरस का पहला मामला कहां सामने आया ?

नई दिल्ली

वैक्सीन पासपोर्ट क्या है

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