सूरदास जी के दोहे अर्थ सहित



बाल्यकाल से ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहकर अपना जीवन धन्य बनाने वाले सूरदास का नाम आदिकाल तक अमर रहेगा। सूरदास की गिनती भक्ति काल के प्रमुख कवियों में होती है। इन्होंने हिंदी साहित्य में कई रचनाएं की थी। इसीलिए इन्हें हिंदी साहित्य का विद्वान भी कहा जाता है।

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इनकी अधिकतर रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण का बखान किया गया है। इन्होंने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाएं और उनकी बचपन की कहानियों का बहुत ही बेहतर तरीके से प्रस्तुतीकरण किया है। सूरदास की रचनाएं भारतीय साहित्य तथा कक्षा 8, 10, 11 एवम बारहवीं में बहुत ही प्रसिद्ध है।

रहीम दास जी के दोहे हिंदी में अर्थ सहित

सूरदास जी के दोहे अर्थ सहित | Surdas Ke Dohe with Meaning in Hindi

कवि सूरदास जी के बारे में कहा जाता है कि यह जन्म से ही अंधे थे परंतु कुछ विद्वानों के अनुसार इस बात पर संदेह जताया जाता है। हालांकि इन्हें भाषाओं की काफी गहरी जानकारी थी।



सूरदास द्वारा साहित्य और कला के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया गया था। यह एक महान संत और साहित्यकार थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा लोगों को कृष्ण भक्ति की तरफ आने के लिए काफी प्रेरित किया।

इनके द्वारा रचित रचनाओं में बहुत ही मार्मिक तरीके से भक्ति भाव का उल्लेख मिलता है। आइए सूरदास के कुछ प्रमुख दोहे हिंदी अर्थ सहित जानते हैं।

दोहा 1:

चरन कमल बन्दौ हरि राई

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।

बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई

सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।

उपरोक्त दोहे का अर्थ: (Doha 1 Meaning)

उपरोक्त लिखित दोहे में सूरदास जी कहते हैं किसी भी व्यक्ति पर भगवान श्री कृष्ण अपनी कृपा बरसाते है।

अगर श्री कृष्ण भगवान लंगड़े व्यक्ति पर कृपा करते हैं तो वह चलने लगता है, साथ ही वह ऊंचे पर्वतों को भी पार कर जाता है। किसी अंधेरे में डूबे हुए व्यक्ति पर अगर भगवान श्री कृष्ण कृपा करते हैं तो उसकी जिंदगी में आशा का उजाला आ जाता है।

भगवान श्री कृष्ण की महिमा ऐसी है कि उनकी महिमा से गूंगे भी बोलने लगते हैं और गरीब लोगों की जिंदगी खुशियों से भर जाती है। इस प्रकार ऐसे दयावान श्रीकृष्ण को मैं बार-बार नमन करता हूं।

दोहा 2:

मैया री मोहिं माखन भावै

मधु मेवा पकवान मिठा मोंहि नाहिं रुचि आवे

ब्रज जुवती इक पाछें ठाड़ी सुनति स्याम की बातें

मन-मन कहति कबहुं अपने घर देखौ माखन खातें

बैठें जाय मथनियां के ढिंग मैं तब रहौं छिपानी

सूरदास प्रभु अन्तरजामी ग्वालि मनहिं की जानी

उपरोक्त दोहे का अर्थ (Doha 2 Meaning)

सूरदास जी के द्वारा ऊपर बताए गए दोहे में भगवान श्री कृष्ण और यशोदा मैया के बीच हो रहे वार्तालाप का वर्णन करते हुए कहा गया है कि श्री कृष्ण यशोदा मैया से कह रहे हैं कि मुझे मिठाई, पकवान कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। मुझे सिर्फ मांखन हीं खाना अच्छा लगता है।

यशोदा मैया और श्रीकृष्ण की इस बात को एक ग्वालिन पीछे छुप करके सुन रही थी और वह मन ही मन यह सोच रही थी कि कृष्ण जी ने कभी अपने घर से माखन खाया भी है अथवा नहीं या फिर वह मेरे ही घर से हमेशा माखन चुराते हैं।

उपरोक्त कहे गए दोहे में सूरदास जी का मतलब यह है कि भगवान श्री कृष्ण को कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं होती है। अंतर्यामी होने की वजह से वह सारी बातें अपने आप ही समझ जाते हैं और इसी प्रकार वो उस ग्वालिन के मन की बात को भी समझ गए थे।

दोहा 3:

मो सम कौन कुटिल खल कामी।

जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥

भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।

हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥

पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।

सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥

उपरोक्त दोहे का अर्थ: (Doha 3 Meaning)

ऊपर लिखे गए दोहे में सूरदास जी के द्वारा अपने मन की बुराइयों को उजागर किया गया है और बुराइयों को उजागर करने के साथ ही साथ उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कृपा करने की प्रार्थना भी की है।

सूरदास जी कहते हैं कि इस दुनिया में मेरे जैसा पापी दूसरा कोई भी व्यक्ति नहीं है, क्योंकि मैंने मोह माया के बंधन में फंसे हुए इस शरीर को ही सच्चा सुख समझ लिया और मैं नमक हराम हूं, जो इस धरती पर लाने वाले व्यक्ति को ही भूल गया।

मैं गंदगी में रहने वाले सूअर की तरह अपनी बुरी आदतों में फंसा हुआ हूं। मैं बहुत ही पापी हूं क्योंकि मैंने कभी सज्जनो की संगति नहीं की और हमेशा झूठे और मक्कारो की गुलामी की। इस प्रकार सूरदास जी अपनी बुराइयों को श्रीकृष्ण के सामने व्यक्त करते हुए उनसे आश्रय की प्रार्थना करते हैं।

दोहा 4:

अबिगत गति कछु कहति न आवै।

ज्यों गुंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै।।

परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।

मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।

रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै।

सब बिधि अगम बिचारहिं तातों सूर सगुन लीला पदगावै।।

उपरोक्त दोहे का अर्थ: (Doha 4 Meaning)

ऊपर बताए गए दोहे के द्वारा सूरदास जी कहना चाहते हैं कि दुनिया में ऐसी बहुत सारी बातें हैं जिन्हें हम चाह करके भी किसी भी व्यक्ति को नहीं समझा सकते हैं, क्योंकि कुछ चीजों को सिर्फ महसूस किया जा सकता है।

कई बार जिन चीजों से हमें काफी खुशी मिलती है, दूसरे लोगों के लिए वह चीजें किसी भी प्रकार के महत्व की नहीं होती है। अगर किसी मुक बधिर व्यक्ति को मिठाई खिला दी जाए तो वह चाह करके भी मिठाई का स्वाद लेने के बावजूद दूसरे व्यक्ति को मिठाई का स्वाद नहीं बता सकेगा।

इस प्रकार से ऊपर बताए गए दोहे के द्वारा सूरदास जी कहना चाहते हैं कि मैंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ भगवान श्री कृष्ण की ही गाथा का वर्णन किया है और भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन करते हुए जो अनुभूति मुझे प्राप्त हुई है, वह शायद ही कोई महसूस कर सके।

दोहा 5:

गुरू बिनु ऐसी कौन करै।

माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै।

भवसागर तै बूडत राखै, दीपक हाथ धरै।

सूर स्याम गुरू ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरे।।

उपरोक्त दोहे का अर्थ (Dhoha 5 Meaning in Hindi)

भगवान श्री कृष्ण को सूरदास जी के द्वारा अपना गुरु माना गया है और भगवान श्री कृष्ण की महिमा का बखान करते हुए सूरदास जी कहना चाहते हैं कि गुरु ही वह व्यक्ति होता है जो व्यक्ति को अंधकार से बाहर निकालने का काम करता है। गुरु के बिना अंधेरे में डूबे हुए संसार से बाहर निकालने वाला दूसरा कोई भी व्यक्ति नहीं होता है।

संसार के मोह माया में फंसने से गुरु ही अपने शिष्य को बचाने का काम करता है और वह ज्ञानवान संपत्ति अपने शिष्य को देता है, जिससे कि मानव का कल्याण हो सके। सूरदास जी कहते हैं कि उनके गुरु श्री कृष्ण उन्हें हर पल मुसीबतों से उबारने का काम करते हैं और संसार सागर के मझधार से उनकी नैया को पार लगाते हैं।

दोहा 6:

हमारे निर्धन के धन राम।

चोर न लेत, घटत नहि कबहूॅ, आवत गढैं काम।

जल नहिं बूडत, अगिनि न दाहत है ऐसौ हरि नाम।

बैकुंठनाम सकल सुख-दाता, सूरदास-सुख-धाम।।

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित

उपरोक्त दोहे का अर्थ (Doha 6 Meaning)

उपरोक्त दोहे में सूरदास जी कहते हैं कि जिनका धरती पर कोई भी नहीं होता है उनके रखवाले भगवान श्रीराम होते हैं, क्योंकि राम नाम एक ऐसा अनोखा खजाना है जिसे किसी भी व्यक्ति के द्वारा भक्ति करके प्राप्त किया जा सकता है।

व्यक्ति जो धन संपत्ति अर्जित करता है उसे खर्च करने पर वह कम भी हो सकती है परंतु राम नाम का महत्व इतना अधिक है कि जिसका जितना जाप किया जाएगा, उसका महत्व उतना ही बढ़ता जाएगा ना कि कम होगा।

राम नाम के अनमोल रत्न को ना तो चोर के द्वारा चोरी किया जा सकता है ना ही इसकी कीमत को कम किया जा सकता है ना यह रत्न गहरे पानी में डूबता है ना ही यह आग मे जलता है। कहने का मतलब है कि संसार में राम नाम ही वह चीज है जिसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।

सूरदास कौन थे ? (सूरदास का जीवन परिचय)

महान कवि सूरदास का जन्म साल 1478 में पंडित परिवार में मथुरा आगरा रोड के किनारे मौजूद रुनकता गांव में हुआ था। कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि इनका जन्म सीही नाम के एक गांव में एक गरीब सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था और आयु बढ़ने के बाद वह आगरा और मथुरा के बीच गउघाट पर जाकर के रहने लगे। इनके पिता जी का नाम रामदास था।

कुछ लोगों के अनुसार यह जन्म से ही अंधे थे, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह बाद में अंधे हुए। इनकी मुलाकात जब श्री वल्लभाचार्य से हुई तो सूरदास उनके शिष्य बन गए और वल्लभाचार्य के द्वारा सूरदास जी को पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया गया। और कृष्ण लीला के पद को गाने का आदेश दिया गया। सूरदास जी की मौत साल 1580 में गोवर्धन के पास पारसोली गांव में हुई।

सूरदास जी ने क्या लिखा था ? (सूरदास जी की रचनाएं)

इनके द्वारा मुख्य तौर पर 5 ग्रंथों की रचना की थी जिनके नाम निम्नानुसार है।

  • रसागर |
  • सूरसारावली |
  • साहित्य-लहरी |
  • नल-दमयन्ती |
  • ब्याहलो |

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