बन्दी प्रत्यक्षीकरण क्या है



बहुत समय पहले पुलिस पर कोई रोक न होने के कारण, वह किसी भी व्यक्ति को अवैधपूर्ण हिरासत में लेकर उसके साथ दुर्व्यवहार करती थी इसके लिए पुलिस किसी को जवाब देह नहीं होती थी इस कारण पुलिस के द्वारा की जा रही मन मानियों को रोकने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून बनाया गया, जिससे पुलिस की मनमानियों पर लगाम लग सकें और उन्हें अपने से बड़े अधिकारीयों और नेताओं को जवाब देना पड़े, पुलिस पर नियंत्रण से आम नागरिक खुद को सुरक्षित महसूस करेगा न कि उनसे डरेगा |



यदि पुलिस किसी भी देश में अपनी मनमानी करती है तो वहां का नागरिक पुलिस से डरता है न कि उनसे सुरक्षा महसूस करे | इससे पुलिस द्वारा हो रहे क्राइम पर पूरी तरह से नियंत्रण पाया जा सकता है | यह कानून पुलिस के लिए सबसे शख्त कानूनों में से एक है, जिसकी वजह से पुलिस में गलत काम करने से भय रहता है | यदि आप भी “बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) क्या है, अधिनियम (Act), अधिकार के बारे में जानकारी” प्राप्त करना चाहते है तो यहाँ पर इसके विषय में जानकारी दी जा रही है |

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बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) का क्या मतलब होता है

बंदी प्रत्यक्षीकरण संविधान में लिखित एक एक्ट है, जिसे  इंग्लैंड में हैबियस कार्पस कहा जाता है, यह एक लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब “आपके पास शरीर है” होता है | बंदी प्रत्यक्षीकरण एक याचिका होती है जिसे रिट भी कहा जाता है | एक आम नागरिक जो पुलिस की हिरासत में गैर- क़ानूनी तरीके से लिया गया हो तथा 24 घंटे से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी उसे अभी तक न्यायलय में न्यायधीश में समक्ष प्रस्तुत न किया गया हो पुलिस के विरुद्ध आम नागरिक या उसके सहयोगी बंदी प्रत्यक्षीकरण आज्ञा पत्र प्राप्त करने के लिए न्यायालय में याचिका दायर करते है |



न्यायालय से आदेश दिया जाता है की कैदी को न्यायालय में उपस्थित किया जाये तथा किन कारणों से उसे बंदी बनाया गया है उसके आरोपों को बताया जाये | न्यायालय ऐसे व्यक्ति को पुलिस की हिरासत से रिहा करा देती है जिसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया हो, याचिका का मुख्य उद्देश्य बंदी को मुक्त करना होता है न की उसे दण्डित करना |

पुलिस की अवैध मनमानियों को रोकने तथा आम नागरिको की सुरक्षा के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण का अधिनियम लागू किया गया है | ब्रिटिश विधिवेत्ता अल्बर्ट वेन डाईसी ने लिखा है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण के अधिनियमों “में कोई सिद्धांत घोषित नहीं और कोई अधिकार परिभाषित नहीं, लेकिन वास्तव में ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता की ज़मानत देने वाले सौ संवैधानिक अनुच्छेदों की बराबरी रखते हैं।”

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बन्दी प्रत्यक्षीकरण के अधिनियम 

याचिका का अर्थ आदेश होता है, जिसे एक विशेष अधिकार के अंतर्गत जारी किया जाता है भारतीय संविधान उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालयों को अधिकार प्रदान करता है कि भारतीय संविधान के तीसरे भाग में दिए गए मौलिक अधिकारों को अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के अंतर्गत लागू करे, उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों के नियमो को तोड़ने पर बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका को जारी करता है तथा उच्च न्यायालय गैर क़ानूनी रूप से हिरासत में लिए गए नागरिक को स्वतंत्र करने के उद्देश्य से ये याचिका जारी करता है | आपातकाल की घोषणा के तहत अनुच्छेद 21 को (किसका अर्थ जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुरक्षा ) निलंबित नहीं किया जा सकता है |   

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बन्दी प्रत्यक्षीकरण का इतिहास 

मैग्ना कार्टा के द्वारा 1215  में बन्दी प्रत्यक्षीकरण कि स्थापना हुयी थी, हेनरी द्वितीय के शासनकाल में समान अधिकार वाले प्रादेशो में लागू किया गया तथा बंदी प्रत्यक्षीकरण के प्रादेश की इस योजना को पहली बार बंदी प्रत्यक्षीकरण अधिनियम 1679 द्वारा समायोजित किया गया था | यह सुविधा हमे अंग्रजो के कानून से प्राप्त हुयी है तथा इस सुविधा को पूरे विश्व के ज्यादा से ज्यादा देशो ने अपनाया है इंग्लैंड के बाद स्कॉटलैंड में 1701 में बन्दी प्रत्यक्षीकरण  के सामान सामर्थ्य कानून को लागू किया गया तथा आस्ट्रेलिया, कनाडा, इजरायल, आयरलैंड, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, पोलैंड, स्पेन, सयुक्त राज्य अमेरिका और भारत में भी यह अधिनियम पारित हो गया |  

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याचिका या रिट (Writ) का अर्थ एवं प्रकार 

याचिका का अर्थ आदेश होता है, न्यायपालिका द्वारा अधिकार के अंतर्गत जो कुछ भी जारी किया जाता है उसे याचिका कहते है, याचिका पांच प्रकार की होती है |

  • बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका |
  • परमादेश याचिका (मेंडेमस) |
  • उत्प्रेषण याचिका (सरोरि) |
  • निषेधाज्ञा याचिका (प्रोहिबिटो) |
  • अधिकार पृच्छा याचिका (क्वो वारंटो) |

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बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने के कारण

कानून सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट 1974 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि बंदी के शरीर को न्यायालय के समक्ष पेश करना इस रिट का सारवान लक्षण नही है। यह याचिका जिन पस्थितियों में निकाली जाती है, उसकी जानकारी इस प्रकार है:- 

  1. जब व्यक्ति को न्यायधीश के समक्ष हाजिर करना आवश्यक हो, यह सुनिश्चित करने के लिए गिरफ्तारी अवैधपूर्ण नहीं है | पुलिस उस व्यक्ति को न्यायालय में हाजिर करने में असफल रहती है तब इस हिरासत को अवैधपूर्ण माना जाता है ऐसी स्थिति में व्यक्ति के परिवार जन उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर सकते हैं।
  2. किसी व्यक्ति को किसी व्यक्तिगत व्यक्ति के द्वारा निरुद्ध किया गया हो |
  3. जब अवरोध क्रिया के उल्लंघन में है, जैसे निरुद्ध व्यक्ति को दिए गए समय में न्यायधीश समक्ष प्रस्तुत नहीं  करना।
  4. सशस्त्र बल अधिनियम, 1958 के अंतर्गत व्यक्ति को न्यायालय में हाजिर किये बिना तीन महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है |
  5. मनमानी गिरफ्तारी का आदेश किसी विधि का उल्लंघन करता है |
  6. असंवैधानिक विधि के अंतर्गत हिरासत में लेना |

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यहाँ आपको बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) के विषय में जानकारी दी गई है | अब आशा है कि आप इस जानकारी से संतुष्ट होंगे, यदि आप इससे संबंधित अन्य किसी जानकारी को प्राप्त करना चाहते है तो कमेंट करके अपना सुझाव दे, आपकी प्रतिक्रिया का जल्द ही उत्तर देने का प्रयास किया जायेगा | अधिक जानकारी के लिए hindiraj.com पोर्टल पर विजिट करते रहे|

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