दल बदल कानून क्या है



इस कानून के अस्तित्व में आने की कथा बड़ी ही रोचक है और इतिहास में इसे ‘आया राम, गया राम’ मुहावरे से जाना जाता है | यह बात है 1967 में हरियाणा के एक विधायक ‘गया लाल’ की, जिन्होंने एक ही दिन में 3 बार पार्टी बदली और तब से ही भारत के राजनितिक इतिहास में ‘आया राम, गया राम’ का मुहवरा प्रचलित हो गया | दल बदल कानून (Anti-Defection Law) एक ऐसा कानून है जो लोकसभा या विधानसभा में सांसद या विधायक के एक पार्टी से दूसरी पार्टी में या दल बदल करने पर लगाम लगाता है |

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यह कानून 1985 में अस्तित्व में आया और इससे पहले इस प्रकार का कोई कानून हमारे संविधान (Constitution) में नहीं था | इसलिए यदि आपको दल बदल कानून (ANTI-DEFECTION LAW) के विषय में अधिक जानकारी नहीं प्राप्त है और आप इसके विषय में जानना चाहते है, तो यहाँ पर आपको दल बदल कानून (Anti-Defection Law) क्या है? | अधिनियम, नियम व संशोधन की जानकारी दी जा रही है |

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क्या है दल बदल कानून (Anti-Defection Law)

यह कानून 1985 में कांग्रेस सरकार के समय लागू किया गया जिसके लिए सविधान में 52वा संशोधन करके 10वी अनुसूची जोड़ी गयी | राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय यह कानून पारित किया गया जिससे चुने गए जनप्रतिनिधियों के दल बदलने पर रोक लगे और ‘आया राम, गया राम’ वाली स्तिथि वापस ना आए |



इसमें उन सभी परिस्तिथि के बारे में बताया गया है जब दल बदल कानून लागू हो सकता है :-

  • अगर कोई जनप्रतिनिधि अपनी मर्जी से अपनी पार्टी छोड़ता है |
  • अगर कोई जनप्रतिनिधि अपनी ही पार्टी के खिलाफ हो जाए |
  • अगर कोई जनप्रतिनिधि अपनी पार्टी ह्विप (Whip) के बावजूद वोट नहीं करता |
  • अगर कोई जनप्रतिनिधि अपनी पार्टी के नियमो व निर्देशों का पालन नहीं करता |

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दल बदल कानून के अपवाद (Exception of Anti Defection Law)

अपवाद के तौर पर यदि किसी पार्टी के एक तिहाई से ज्यादा जनप्रतिनिधि अपनी पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में जान चाहे तो उनकी सदस्यता नहीं जायेगी लेकिन 2003 के बाद इस कानून में बदलाव किया गया और अब इसे दो तिहाई कर दिया गया जिससे दल बदल करने वालो पर ज्यादा सख्ती होजाए |

लेकिन इसके बाद अब दल बदल करने वाले एक या दो लोग न होकर, यह कार्य एक ग्रुप में होने लगा जिस पर उस समय कोई कानून नहीं था और तब सविधान के 91वे संशोधन के जरिये अब किसी ग्रुप पर दल बदल कानून लगाया जा सकता है | इसमें भी यदि पार्टी के दो तिहाई से ज्यादा जनप्रतिनिधि अलग होकर अलग पार्टी बना लेते है तब भी उनकी सदस्यता नहीं जायेगी |

यह कानून इन सभी परिस्थितियों में लागू नहीं किये जा सकते:-

  • जब पूरी पार्टी एक अन्य पार्टी से मिल जाए |
  • अगर पार्टी से अलग हुए जनप्रतिनिधि अलग से नई पार्टी बना ले |
  • अगर पार्टी के विलय से पार्टी के सदस्य उसे स्वीकार नहीं करते |
  • जब पार्टी के दो तिहाई से सदस्य दूसरी पार्टी में शामिल हो जाए |

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दल बदल कानून में संशोधन (Amendment in Anti Defection Law)

  • 2003 में एक तिहाई से दो तिहाई सदस्यों के पार्टी छोड़ने पर सदस्यता नहीं जायेगी |
  • संविधान में 91वाँ संशोधन से माध्यम से पार्टी में व्यक्तिगत ही नहीं, सामूहिक दल बदल को असंवैधानिक बनाया |
  • 1991 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 10वीं अनुसूची को वैध बता या लेकिन सूची के पैराग्राफ़ 7 को असंवेधानिक ठहराया और स्पीकर के फैसले की क़ानूनी समीक्षा की जा सकती है |

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उम्मीद है कि हमारे पाठको को दल बदल कानून के बारे में सारी जानकारी मिल गयी है और यदि वे परीक्षा के लिए तैयारी भी कर रहे है तो यह उनके लिए उपयोगी भी साबित होगा | हमारा Anti-Defection Law Explained in Hindi  भाषा में आपको अच्छा लगा हो तो, आपसे निवेदन है कि इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे |

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